शुक्रवार व्रत और कथा

महत्वपूर्ण जानकारी

  • शुक्रावर व्रत और कथा
  • शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2024
  • क्या आप जानते हैं : शुक्रवार का दिन माता लक्ष्मी और माता संतोषी को समर्पित है। यह व्रत विशेष रूप से महिलाएं करती हैं।

हिन्दू धर्म में सप्ताह के सात दिन किसी ने किसी देवता को समर्पित होते है। इस प्रकार शुक्रवार का दिन भी हिन्दू धर्म में महत्व रखता है। शुक्रवार का दिन माता लक्ष्मी और माता संतोषी को समर्पित होता है। यह व्रत विशेषकर महिलाओं द्वारा किया जाता हैं। इस व्रत का पुरूष भी कर सकते हैं। शुक्रवार व्रत बहुत ही फल दायक माना जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी और माता संतोषी दोनों की पूजा का विधान है। कुछ लोग माता लक्ष्मी का व्रत करते है और और कुछ माता संतोषी का व्रत करते हैं। व्रत का करने का उद्देश्य एक ही होता है अपनी मनोकामनाओं को पूरा करना और माता का आर्शीवाद पाना।

लक्ष्मी माता के लिए व्रत

शुक्रवार के दिन देवी लक्ष्मी की पूजा व व्रत किया जाता है। इस व्रत का वैभव लक्ष्मी व्रत भी कहा जाता है। माता लक्ष्मी को धन और वैभव की देवी कहा जाता है। जो व्यक्ति शुक्रवार का व्रत माता लक्ष्मी के लिए करता है उसे धन, सुख समृद्धि और संतान की प्राप्ति होती है। माता लक्ष्मी की आरती में लिखा है कि ‘‘जिस घर थारो वासो, तेहि में गुण आता, कर न सके सोई कर ले, मन नहिं धड़काता’’ अर्थात् जिस घर में देवी लक्ष्मी का वास होता है तो सत गुण घर में आते है और कैसी भी विपदा आये मन नहीं घबराता है।

वैभव लक्ष्मी के स्वरूप

भगवती लक्ष्मी के अनेक रूप पुराणों में वर्णित हैं, परन्तु ‘श्री मां वैभव लक्ष्मी व्रत’ के समय ‘श्रीयंत्र’ के साथ इनके इन स्वरूपां का विशेष रूप से ध्यान करना चाहिए - 1. श्री धन लक्ष्मी, 2. श्री गज लक्ष्मी, 3. श्री ऐश्वर्य लक्ष्मी, 4. श्री अधि लक्ष्मी, 5. श्री विजया लक्ष्मी, 6. श्री धान्य लक्ष्मी, 7. श्री वीर लक्ष्मी, 8. श्री संतान लक्ष्मी।

वैभव लक्ष्मी व्रत कब कर सकते है

शुक्रवार का यह व्रत किसी भी शुक्रवार से आरम्भ कर सकते है। यदि यह व्रत शुक्ल पक्ष का शुक्रवार हो तो उत्तम होता है।
यह व्रत आरम्भ करते समय व्रती को यह संकल्प लेना चाहिए कि कितने शुक्रवार का व्रत अवश्य करूंगा। इस हेतु 7, 11, 21, 31, 51, व 101 शुक्रवार के व्रत कर सकते है।

वैभव लक्ष्मी व्रत की पूजा

शुक्रवार का व्रत करने के लिए जातकों को ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए और स्नान करके साफ-सुथरे कपड़ा पहनना चाहिए। कपड़े धारण करने के बाद माता के सामने व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए। घर के किसी भी स्थान पर माता लक्ष्मी की मूर्ति और श्रीयंत्र को स्थापित करना चाहिए। शाम के वक्त माता रानी की पूजा करनी चाहिए। वैभव लक्ष्मी की कथा सुननी चाहिए और उन्हें भोग लगाना चाहिए। प्रसाद बांटने के बाद व्रती एक समय का भोजन कर सकता हैं।

वैभव लक्ष्मी व्रत कथा

महाभारत काल के दौरान एक बार महर्षि वेदव्यास जी ने हस्तिनापुर का भ्रमण किया। महाराज धृतराष्ट्र ने उन्हें अपने राजमहल में पधारने का आमंत्रण दिया। रानी गांधारी और रानी कुंती ने मुनि वेद व्यास से पूछा कि हे मुनि आप बताएं कि हमारे राज्य में धन की देवी मां लक्ष्मी और सुख-समृद्धि कैसे बनी रहे। यह सुनकर वेदव्यास जी ने कहा कि यदि आप अपने राज्य में सुख-समृद्धि चाहते हैं तो प्रतिवर्ष अश्विनी कृष्ण अष्टमी को विधिवत श्री महालक्ष्मी का व्रत करें। आगे पढ़ें...


संतोषी माता के लिए व्रत

शुक्रवार के दिन माता संतोषी की पूजा व व्रत किया जाता है। इस व्रत का संतोषी व्रत भी कहा जाता है। जो व्यक्ति शुक्रवार का व्रत माता संतोषी के लिए करता है उसे धन, सुख समृद्धि और संतान की प्राप्ति होती है। हिन्दू धर्म में माता संतोषी के व्रत का विशेष महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता संतोषी भगवान श्रीगणेश की पुत्री हैं। कहा जाता है कि माता संतोषी की पूजा करने से जीवन में संतोष का प्रवाह होता है। माता संतोषी की पूजा करने से धन और विवाह संबंधी समस्याएं भी दूर होने की मान्यता है।

संतोषी माता व्रत कब कर सकते है?

शुक्रवार का यह व्रत किसी भी शुक्रवार से आरम्भ कर सकते है। यदि यह व्रत शुक्ल पक्ष का शुक्रवार हो तो उत्तम होता है। सुख और सौभाग्य के लिए माता संतोषी के 16 शुक्रवार के व्रत करने चाहिए।

संतोषी मां के व्रत में क्या खाया जाता है?

संतोषी माता का व्रत करने वाले स्त्री-पुरुष को खट्टी चीज का सेवन और स्पर्श नहीं करना चाहिए। माता संतोषी को भोग लगाने वाला प्रसाद गुड़ व चने व्रती को भी खाने चाहिए।

संतोषी व्रत की पूजा

शुक्रवार का व्रत करने के लिए जातकों को ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए और स्नान करके साफ-सुथरे कपड़ा पहनना चाहिए। कपड़े धारण करने के बाद माता के सामने व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए। घर के किसी भी स्थान पर माता संतोषी की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। शाम के वक्त माता रानी की पूजा करनी चाहिए। संतोषी व्रत की कथा सुननी चाहिए और उन्हें भोग लगाना चाहिए। प्रसाद बांटने के बाद व्रती एक समय का भोजन कर सकता हैं। परन्तु खाने में खट्टी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।

मां संतोषी व्रत कथा

एक बुढ़िया थी, उसके सात बेटे थे। 6 कमाने वाले थे जबकि एक निक्कमा था। बुढ़िया छहों बेटों की रसोई बनाती, भोजन कराती और उनसे जो कुछ जूठन बचती वह सातवें को दे देती। एक दिन वह पत्नी से बोला- देखो मेरी मां को मुझ पर कितना प्रेम है। वह बोली- क्यों नहीं, सबका झूठा जो तुमको खिलाती है। वह बोला- ऐसा नहीं हो सकता है। मैं जब तक आंखों से न देख लूं मान नहीं सकता। बहू हंस कर बोली- देख लोगे तब तो मानोगे। आगे पढ़ें...









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