जागेश्वर धाम

महत्वपूर्ण जानकारी

  • Location: Almora, Nainital in Kumaon Region of Uttarakhand Area Code - 05962
  • Nearest Railway Station : Kathgodam station at a distance of nearly 125 kilometres from Jageshwar Dham.
  • Nearest Airport : Pant Nagar Airport at a distance of nearly 150 kilometres from Jageshwar Dham.
  • Distances : Delhi to Jageshwar 359 km, Almora 35 km, Haldwani 131 km and Pithoragarh 88 km. State transport, and private jeeps and taxis ply from these place for Jageshwar regularly
  • Main Festival : Jageshwar Monsoon Festival and Maha Shivratri Mela.
  • Best Time to Visit : April to June
  • Primary Deity : Shiva.
  • Photography: Allowed

जागेश्वर धाम हिन्दूओं का प्रमुख धार्मिक स्थल है तथा ऐसा माना जाता है कि यहां स्थित शिव लिंग 12 ज्योतिलिंग में से एक है।  जागेश्वर धाम उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां के सभी मंदिर प्राचीन मंदिर है तथा यह 124 छोटे व बडे मंदिरों का एक समूह है जो उंचे धने हरे भरे देवदार के वृक्षों के बीच है। यह स्थल प्राकृतिक सुन्दरता से भरपूर है या ऐसा कहा जा सकता है कि यह स्थल प्राकृतिक सुन्दरता, शान्ति व आस्था को अपने में समाये हुए है। प्राचीन काल के ये मंदिर मुख्य रूप से लकड़ी और बड़े बड़े पत्थरों के माध्यम से बनाये गए हैं। मंदिरों के दरवाजों की चैखटें देवी देवताओं की प्रतिमाओं से अलंकृत हैं। मंदिरों के निर्माण में तांबे की चादरों और देवदार की लकडी का भी प्रयोग किया गया है। ये मंदिर समूह प्राचीन काल की स्थापत्य एवं शिल्प कला के अदभूत नमूने हैं ।

ऐसा माना जाता है कि जागेश्वर धाम में इन मंदिरों के समूह को 9वी से 13वीं शाताब्दी के दौरान बनाये गये है तथा इनमें से कई मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित है। इस स्थल के मुख्य मंदिर - दन्देश्वर मंदिर, चांडी का मंदिर, जागेश्वर मंदिर, कुबेर मंदिर, मृत्युंजय मंदिर, नंदा देवी, नव दुर्गो, नव ग्रह, पिरामिड मंदिर और सूर्य मंदिर है। इन मंदिरों में से सबसे प्राचीन मंदिर महा मृत्युंजय मंदिर है और सबसे बड़ा मंदि दन्देश्वर मंदिर है।

उत्तर भारत में गुप्त साम्राज्य के दौरान हिमालय की पहाडियों के कुमाऊं क्षेत्र में कत्यूरीराजा थे। जागेश्वर मंदिरों का निर्माण भी उसी काल में हुआ। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार इन मंदिरों के निर्माण की अवधि को तीन कालों में बांटा गया है - कत्यरीकाल, उत्तर कत्यूरीकाल एवं चंद्र काल।
पुराणों के अनुसार शिवजी तथा सप्तऋषियों ने यहां तपस्या की थी। कहा जाता है कि प्राचीन समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नतें उसी रूप में स्वीकार हो जाती थीं तथा अगर किसी के लिए बुरी कामना भी की जाती थी वो भी भगवान शिव बिना सोचे समझे स्वीकर कर लिया करते थे जिसका दुरूप्रयोग होने लगा था। आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य जागेश्वर आए और उन्होंने महामृत्युंजय में स्थापित शिवलिंग को कीलित करके इस दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की। शंकराचार्य जी द्वारा कीलित किए जाने के बाद से अब यहां दूसरों के लिए बुरी कामना करने वालों की मनोकामनाएंपूरी नहीं होती केवल यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएं ही पूरी हो सकती हैं।

जागेश्वर मानसून का महोत्सव, 15 जुलाई से 15 अगस्त के बीच आयोजित किया जाता है जो कि हिंदू कैलेंडर का महीना श्रावण के दौरान और वार्षिक महा शिवरात्रि मेला (शिवरात्रि त्योहार) के दौरान होता है। यह महोत्सव पूरे कुमाऊं क्षेत्र में मुख्य महोत्सव के रूप में माना जाता है।




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