बैरासकुंड महादेव मंदिर - रावण की तपस्या की पावन धरती

महत्वपूर्ण जानकारी

  • पता: मताई - बैरासकुंड रोड, खलतारा, क्विराली, उत्तराखंड 246449।
  • समय: सुबह 05:00 बजे खुलेगा और रात 09:00 बजे बंद होगा।
  • सड़क मार्ग से: दिल्ली या देहरादून से नंदप्रयाग तक बसें और टैक्सी उपलब्ध हैं। नंदप्रयाग से कांडल पुल होते हुए बैरासकुंड महादेव तक टैक्सी लें। मार्ग: कर्णप्रयाग – नंदप्रयाग – विकासनगर घाट – कांडल पुल – बैरासकुंड महादेव मंदिर। कुल दूरी लगभग 250-300 किमी है।
  • रेल मार्ग से: निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। ऋषिकेश से नंदप्रयाग तक बस या टैक्सी लें, फिर बैरासकुंड तक आगे बढ़ें।
  • वायु मार्ग से: जॉली ग्रांट एयरपोर्ट (देहरादून) निकटतम हवाई अड्डा है, जो नंदप्रयाग से 214 किमी दूर है। एयरपोर्ट से टैक्सी आसानी से उपलब्ध है।

उत्तराखंड की देवभूमि में अनगिनत प्राचीन मंदिर बिखरे हुए हैं, जो आस्था और आध्यात्मिकता के प्रतीक हैं। इनमें से एक है बैरासकुंड महादेव मंदिर, जो चमोली जिले के बैरासकुंड गांव में स्थित है। यह मंदिर न केवल अपनी प्राचीनता के लिए जाना जाता है, बल्कि हिंदू पौराणिक कथाओं से जुड़ी एक रोचक कथा के कारण भी विशेष महत्व रखता है। यहां रावण ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी, जो इस स्थान को और भी पवित्र बनाती है। यदि आप शिव भक्त हैं या उत्तराखंड की धार्मिक यात्राओं में रुचि रखते हैं, तो बैरासकुंड महादेव अवश्य दर्शन के लिए जाएं।

स्थान और महत्व

बैरासकुंड महादेव मंदिर चमोली जिले में नंदप्रयाग के निकट स्थित है। यह बद्रीनाथ मार्ग पर कांडल पुल के पास बसा है, जो अलकनंदा नदी के किनारे एक शांतिपूर्ण वातावरण प्रदान करता है। मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और उत्तराखंड के सबसे लोकप्रिय प्राचीन मंदिरों में से एक है। यहां की शांति और प्राकृतिक सौंदर्य आगंतुकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। बैरासकुंड क्षेत्र में कई अन्य प्राचीन मंदिर भी हैं, जो इस स्थान को धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित करते हैं।

पौराणिक इतिहास

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, लंकापति रावण ने बैरासकुंड महादेव में भगवान शिव की आराधना की थी। कथा प्रसिद्ध है कि रावण ने एक पैर पर खड़े होकर लंबी तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे वरदान दिया। यह घटना रामायण से जुड़ी हुई है और इस मंदिर को रावण की तपस्या स्थली के रूप में जाना जाता है। मंदिर की प्राचीन संरचना इसकी ऐतिहासिकता का प्रमाण देती है, जो सदियों पुरानी परंपराओं को जीवित रखती है।

यात्रा के दौरान पहाड़ी रास्तों का ध्यान रखें और मौसम के अनुसार तैयारी करें।

पूजा विधि और उत्सव

मंदिर में पूजा की परंपरा अत्यंत प्राचीन और जीवंत है। मुख्य पुजारी नेपाली महाराज प्रतिदिन सुबह 4 बजे पूजा आरंभ करते हैं। वे भगवान शिव को जल अर्पित करते हैं और दोपहर 12 बजे तक पूजा जारी रहती है। आसपास के गांवों के निवासी यहां नियमित रूप से दर्शन के लिए आते हैं। वर्ष भर विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान आयोजित होते हैं।

विशेष रूप से महाशिवरात्रि पर मंदिर समिति द्वारा एक भव्य धार्मिक मेला लगाया जाता है, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों से भक्त एकत्रित होते हैं। यह मेला आस्था, भक्ति और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का अनुपम संगम होता है।

आसपास के आकर्षण

बैरासकुंड महादेव नंदप्रयाग के निकट होने के कारण कई अन्य पर्यटन स्थलों से जुड़ा है। आप यहां से बद्रीनाथ धाम, कर्णप्रयाग और अलकनंदा नदी के किनारे की यात्रा कर सकते हैं। नंदप्रयाग में नंदेश्वर मंदिर और संगम दृश्य भी देखने लायक हैं। प्रकृति प्रेमी ट्रेकिंग और नदी किनारे की सैर का आनंद ले सकते हैं।

अंत में 

बैरासकुंड महादेव मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक भी है। यहां आकर आप शांति, भक्ति और प्रकृति के सौंदर्य का अनुभव कर सकते हैं। यदि आप उत्तराखंड यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो इस प्राचीन मंदिर को अपनी सूची में शामिल करें। जय भोलेनाथ!










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