

भीष्म पितामह की मृत्यु बाणों की शैया (बाणों के बिस्तर) पर इसलिए हुई थी क्योंकि उन्होंने अपनी इच्छा मृत्यु का वर प्राप्त किया था — अर्थात वे जब चाहें तब मर सकते थे। महाभारत युद्ध के दौरान, अर्जुन ने श्रीकृष्ण के आदेश से भीष्म पर बाणों की वर्षा की, जिससे वे ज़मीन पर गिर गए, लेकिन मरे नहीं। उनके शरीर में इतने बाण धंसे थे कि वे ज़मीन को स्पर्श नहीं कर रहे थे — यही है उनकी "बाणों की शैया"।
श्रीकृष्ण ने महाभारत में युधिष्ठिर से कहा था कि कोई भी व्यक्ति बिना कर्मफल के इस प्रकार की पीड़ा नहीं सहता। उन्होंने संकेत दिया कि भीष्म पितामह के एक पुराने कर्म के कारण उन्हें यह शैय्या प्राप्त हुई।
श्रीकृष्ण द्वारा बताई गई कथा:
एक कथा के अनुसार, भीष्म पितामह ने अपने पिछले जन्म में एक राजा थे जिन्होंने एक बार एक सर्प को बाण से मारकर एक पेड़ के तने में फंसा दिया था। उस सर्प की मृत्यु अत्यधिक पीड़ा में हुई थी। उन्होंने उसे न मारा, न बचाया, पर बीच में छोड़ दिया। यह क्रूरता और संवेदनहीनता उस जीव के प्रति अन्याय था।
इसलिए, भगवान कृष्ण ने संकेत दिया कि "जिसने एक सर्प को ज़मीन पर छटपटाने दिया था, वह स्वयं अब बाणों की शैया पर छटपटाएगा।"
यह एक कर्म सिद्धांत का उदाहरण है — जहाँ पिछले जन्मों के कर्म भी फल देते हैं।