यह व्रत पौष माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया को किया जाता है। इस दिन जगजननी गौरी को षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। इस व्रत को महिलाओं द्वारा किया जाता है। इसलिए यह व्रत महिलाओं के लिए महत्वूपर्ण है। गौरी पूजन के प्रभाव से पति-पुत्र चिरंजीवी होते हैं तथा स्वर्गलोग की प्राप्ति होती है।
गांव में एक गरीब पति-पत्नि रहते थे। महिला जो कि भगवान पर विश्वास करती थी और पूजा पाठ करती थी। उसका पति कुछ काम नहीं करता था और शराब का सेवन करता है। महिला लोगों के घरों में काम करती थी और इस से इनका घर खर्चे चलता था। महिला जो रुपये कमाती थी उसका पति उससे छिन लेता था, अगर महिला रुपये नहीं देती तो उसका पति उसको मारता पीठता था। वह आदमी पूरे रुपये शराब में लूट देता था।
एक बार वह महिला घर के बार दुःखी मन से बैठी हुई थी। महिला के पास कुछ भी नहीं था ना रुपये और ना खाना। तभी एक साधु आये और उस महिला से भिक्षा मांगी। महिला ने बहुत दुःखी मन से बोली बाबा जी मेरे पास कुछ भी नहीं है मैं आपको क्या दे सकती हुँ।
साधु ने महिला से कहा कि बेटी तुम बहुत दुःखी लग रही हो मुझे बातओं शायद मैं, तुम्हारा कुछ दुःख दुर सकू। महिला ने अपनी पूरी बात साधु की बताई। महिला ने साधु को बताया कि उसकी शादी को 10 वर्ष हो गये है परन्तु उसको न तो पति सुख मिला है और ना ही संतान सुख।
साधु ने महिला को ब्रह्मगौरी व्रत करने को कहा। इस व्रत को करने से तुम्हें संतान सुख भी मिलेगा और पति सुख भी मिलेगा। महिला ने साधु से कहा कि यह व्रत कब करते और कैसे करते कृपा करके इस व्रत का विधि विधान बताने को कष्ट करें।
यह व्रत पौष माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया को किया जाता है। इस व्रत में पूरे दिन का उपवास करते है और एक समय भोजन किया जाता है।
महिला ने साधु द्वारा बताये गये व्रत और विधान के अनुसार ब्रह्मगौरी व्रत किया जिसके प्रभाव से उसका पति काम करने लगा और शराब पिना भी छोड़ दिया। महिला को संतान सुख भी प्राप्त हुआ। अब महिला का जीवन सुख शांति से व्यति होने लगा।