कोपेश्वर मंदिर: क्रोधित शिव का शांत स्थान

महत्वपूर्ण जानकारी

  • 📍 स्थान: खिद्रापुर, महाराष्ट्र 416108
  • 🕰️ खुलने और बंद होने का समय: सुबह 6:00 बजे से शाम 8:00 बजे तक
  • 🚉 निकटतम रेलवे स्टेशन: कोल्हापुर रेलवे स्टेशन, कोपेश्वर मंदिर से लगभग 60 किलोमीटर दूर स्थित है।
  • ✈️ निकटतम हवाई अड्डा: कोल्हापुर हवाई अड्डा, कोपेश्वर मंदिर से लगभग 70 किलोमीटर दूर स्थित है।
  • 💫 क्या आप जानते हैं? कोपेश्वर मंदिर भारत का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहाँ भगवान शिव की पूजा भगवान विष्णु के साथ की जाती है, जिन्हें यहाँ "धोपेश्वर" के नाम से जाना जाता है। मंदिर का गोलाकार गर्भगृह और जटिल पत्थर की नक्काशी इसे प्राचीन चालुक्य वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना बनाती है।

महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के खिद्रापुर गाँव में कृष्णा नदी के तट पर स्थित कोपेश्वर मंदिर (Kopeshwar Temple) भारतीय स्थापत्य कला और धार्मिक समन्वय का एक अद्भुत उदाहरण है। यह प्राचीन मंदिर अपनी जटिल नक्काशी, अद्वितीय वास्तुकला और खास पौराणिक महत्व के लिए जाना जाता है।

मंदिर का इतिहास और निर्माण

कोपेश्वर मंदिर का निर्माण एक लंबी अवधि में पूरा हुआ, जिसके मुख्य संरक्षक शिलाहार वंश के राजा थे।

  • निर्माण काल: माना जाता है कि मंदिर की नींव 7वीं शताब्दी में चालुक्य राजाओं के शासनकाल के दौरान रखी गई थी, लेकिन इसका प्रमुख निर्माण और पुनरुद्धार 12वीं शताब्दी में शिलाहार राजा गंदारादित्य द्वारा 1109 से 1178 ईस्वी के बीच करवाया गया।

  • संरक्षक: शिलाहार राजा जैन धर्म के अनुयायी थे, लेकिन उन्होंने इस शैव मंदिर का निर्माण करवाया, जो उस समय की सर्वधर्म समभाव की भावना को दर्शाता है। बाद में 13वीं शताब्दी में देवगिरी के यादव राजा सिंघण II ने इसका जीर्णोद्धार करवाया, जिसका उल्लेख एक शिलालेख में मिलता है।

  • क्षति: इतिहास में मुगल शासक औरंगजेब के आक्रमणों के कारण मंदिर की कई मूर्तियों को खंडित किया गया, जिसके निशान आज भी मंदिर परिसर में दिखाई देते हैं।

पौराणिक कथा: कोप और शांति

'कोपेश्वर' नाम का अर्थ है 'क्रोधित ईश्वर'। यह नाम भगवान शिव के क्रोध से जुड़ी एक पौराणिक घटना से आया है:

  • जब राजा दक्ष ने अपने यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया और देवी सती का अपमान किया, तो सती ने यज्ञ कुंड में आत्मदाह कर लिया।

  • सती की मृत्यु से शिव अत्यंत क्रोधित हुए। उनके इस प्रचंड 'कोप' को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने यहाँ हस्तक्षेप किया और शिव को शांत किया।

  • कहा जाता है कि यह वही स्थान है जहाँ शिव का क्रोध शांत हुआ था। इसलिए इस स्थान पर शिव (कोपेश्वर) और विष्णु (धोपेश्वर) दोनों की उपस्थिति है।

     

🏛️ वास्तुकला की अद्वितीय विशेषताएँ

कोपेश्वर मंदिर चालुक्य देवालय शैली की वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। यह मंदिर बेसाल्ट (कठोर काली चट्टान) पत्थर से निर्मित है, जिसे सह्याद्री पर्वत श्रृंखला से लाया गया था।

1. स्वर्ग मंडप (खुली छत वाला हॉल)

यह मंदिर की सबसे अनूठी विशेषता है।

  • यह एक गोलाकार खुला मंडप है, जिसकी छत बीच में खुली है। इस खुली छत से सूर्य की किरणें सीधे गर्भगृह तक पहुँचती हैं, जिससे यह प्राकृतिक 'सूर्याभिषेक' का दृश्य प्रस्तुत करता है।

  • यह मंडप 48 नक्काशीदार खंभों पर टिका हुआ है। खंभों की कारीगरी इतनी महीन है कि इनमें धातुई चमक दिखाई देती है।

  • मंडप के केंद्र में एक गोलाकार रंगशिला (पत्थर का चबूतरा) है, जिसका आकार छत के छेद के बराबर है।

2. गर्भगृह में शिव और विष्णु

यह मंदिर भारत के कुछ गिने-चुने शिव मंदिरों में से एक है जहाँ गर्भगृह में एक साथ शिव और विष्णु दोनों विराजमान हैं:

  • यहाँ मुख्य देवता कोपेश्वर शिवलिंग हैं।

  • इसके साथ ही, भगवान विष्णु की प्रतिमा धोपेश्वर लिंग के रूप में स्थापित है।

     

3. नंदी की अनुपस्थिति

परंपरागत शिव मंदिरों के विपरीत, कोपेश्वर मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर नंदी की प्रतिमा नहीं है

  • मान्यता है कि सती जब दक्ष के यहाँ जा रही थीं, तो वह नंदी पर सवार होकर गई थीं, इसलिए यहाँ नंदी को स्थापित नहीं किया गया।

  • इसका एक अन्य कारण यह भी है कि मंदिर का नंदी यहाँ से लगभग 12 कि.मी. दूर कर्नाटक के यडूर गाँव में एक अलग मंदिर में स्थापित है।

4. गज पट्टिका और नक्काशी

  • मंदिर का निचला आधार 92 हाथी की प्रतिमाओं (गज पट्ट) पर टिका हुआ प्रतीत होता है, मानो ये हाथी ही पूरे मंदिर का भार वहन कर रहे हों।

  • बाहरी दीवारों पर देवी-देवताओं, पौराणिक कथाओं और शिवलीलामृत की कहानियों की विस्तृत नक्काशी की गई है।

कोपेश्वर मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि एक ऐसा स्थापत्य चमत्कार है जो प्राचीन भारतीय शिल्पकारों की कला, इंजीनियरिंग और खगोलीय ज्ञान का प्रमाण है।









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