वट पूर्णिमा व्रत हिंदू धर्म के सबसे शुभ त्योहारों में से एक है, जिसे ज्येष्ठ पूर्णिमा या वट सावित्री पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। 'पूर्णिमा' का अर्थ है पूर्ण चंद्रमा, और यह व्रत हिंदू पंचांग के ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा के दिन (15वें दिन) मनाया जाता है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार मई-जून के महीनों में आता है।
नारद पुराण के अनुसार, वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ अमावस्या और ज्येष्ठ पूर्णिमा दोनों दिन मनाया जा सकता है। स्कंद पुराण में ज्येष्ठ पूर्णिमा को व्रत की तिथि बताया गया है, जबकि निर्णयामृत में ज्येष्ठ अमावस्या को व्रत की तिथि बताया गया है।
वट पूर्णिमा व्रत भारत के विभिन्न राज्यों और विदेशों में रहने वाले हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है। यह पवित्र व्रत देवी गौरी और सती सावित्री को समर्पित है। महाराष्ट्र और गुजरात में इसे विशेष धूमधाम से मनाया जाता है, वहीं दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार और उड़ीसा में भी इसे श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है। दक्षिण भारत के कर्नाटक और तमिलनाडु में इस व्रत को 'करदइयां नॉनबू' कहा जाता है।
वट पूर्णिमा व्रत के दिन विवाहित महिलाएं 'सावित्री-सत्यवान' और वट (बरगद) वृक्ष की पूजा करती हैं। हिंदू धर्म में बरगद के पेड़ का विशेष महत्व है, क्योंकि इसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है। वट वृक्ष की जड़ें ब्रह्मा का, तना विष्णु का और ऊपरी भाग शिव का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस पवित्र वृक्ष के नीचे पूजा करने से भक्त अपनी सभी मनोकामनाएं पूरी कर सकते हैं।
ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को भक्तगण मिट्टी या सोने से बनी 'भैंसे पर सवार यमराज' और 'सावित्री-सत्यवान' की मूर्ति लाते हैं। फिर मूर्तियों की सिंदूर, केसर, धूप-चंदन और फलों से पूजा की जाती है। यह व्रत सौभाग्य और सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद देने वाला माना जाता है, जैसे सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस पाया था।
वट पूर्णिमा की महिमा का वर्णन कई हिंदू धर्मग्रंथों जैसे स्कंद पुराण, निर्णयामृत और भविष्योत्तर पुराण में किया गया है। यह पवित्र व्रत विवाहित हिंदू महिलाएं अपने पति और बच्चों की खुशहाली के लिए मनाती हैं। इस व्रत में आस्था ही इसे इतना पवित्र और शुभ बनाती है। गर्भवती महिलाएं, कामकाजी महिलाएं या किसी बीमारी से पीड़ित महिलाएं भी इस पूजा को कर सकती हैं, भले ही वे उपवास न रखें। अपनी प्रार्थनाओं को समर्पित करके, वे वही लाभ प्राप्त कर सकती हैं जो उन लोगों को मिलता है जो कर्तव्यनिष्ठा से व्रत रखते हैं।
वट पूर्णिमा व्रत न केवल विवाहित जोड़ों के बीच के बंधन को मजबूत करता है, बल्कि यह नारीत्व की भावना का भी सम्मान करता है। इस व्रत का पुण्य-प्रताप साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति कराता है और घर में व्याप्त दुख और दरिद्रता को दूर करता है।