यह श्लोक भगवद गीता, अध्याय 7, श्लोक 16 से है। यह संस्कृत में लिखा गया है और हिंदी में इसका अनुवाद इस प्रकार है:
चतुर्विधा भजन्ते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन |
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ ||16||
"हे अर्जुन! चार प्रकार के पुण्यात्मा लोग मेरी भक्ति करते हैं — दुखी, जिज्ञासु, अर्थ की कामना वाले और ज्ञान से युक्त ज्ञानी।"
भगवान कृष्ण बड़ी करुणा से कहते हैं कि लोग जब मेरी ओर आते हैं, तो उनके कारण अलग-अलग होते हैं — कोई दुख से टूटा होता है (आर्त), कोई जानना चाहता है ‘मैं कौन हूँ?’ (जिज्ञासु), कोई सांसारिक मदद चाहता है (अर्थार्थी), और कोई मुझे ही सत्य जानकर प्रेम करता है (ज्ञानी)। ये सभी भक्ति के रास्ते हैं, कोई छोटा नहीं। जीवन में जब भी हम टूटते हैं या खोज में होते हैं, वो भी एक निमंत्रण है ईश्वर से जुड़ने का। शुरुआत कहीं से भी हो, अंत में हर सच्चा दिल उसी ‘ज्ञानी भाव’ में पहुँचता है — जहाँ प्रभु ही सबकुछ हो जाते हैं।