भगवद गीता अध्याय 5, श्लोक 27

स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवोः।
प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ ॥27॥

अर्थ: बाह्य इन्द्रिय-विषयों को बाहर रखना और नेत्रों को भौहों के बीच में रखना, और साथ ही नासिका के भीतर श्वास के आने-जाने के प्रवाह को बराबर करना;

संस्कृत शब्द का हिंदी में अर्थ:

स्पर्शान-इन्द्रिय विषयों से सम्पर्क;
कृत्वा-करना;
बहिः-बाहरी;
बाह्यान्–बाहरी विषय;
चक्षुः-आंखें;
 - और;
एव–निश्चय ही;
अन्तरे-मध्य में;
भ्रवोः-आंखों की भौहों के;
प्राण-अपानो-बाहरी और भीतरी श्वास;
समौ-समान;
कृत्वा-करना;
नास-अभ्यन्तर-नासिका छिद्रों के भीतर;
चारिणौ-गतिशील; 



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