भगवान गणेश को बुद्धि का देवता भी कहा जाता है। पहले धर्मप्राण भारत के प्रत्येक विद्यालय में बालकों से सर्वप्रथम तख्ती पर ‘श्रीगणेशाय नमः’ लिखवाकर और भगवान् श्रीगणेश का पूजन करवा कर अध्यापक पढ़ाना प्रारम्भ करता था। प्रतिवर्ष सारे विद्यालयों में भाद्रपद श्रीगणेश चतुर्थी को उनका बड़ी धूम-धामके साथ पूजन कराया जाता था, जो बस, देखते ही बनता था। समस्त भारत श्रीगणेश-भक्ति के रंग में रंग जाता था और बच्चा-बच्चा उनके प्रेम में विभोर हो जाता था। आज उसी धर्मप्राण भारत के सभी विद्यालयों में भगवान् श्रीगणेश का पूजन करना तो दूर रहा, उनका नाम भी नहीं लिया जाता। जब तक विद्यार्थी भगवान् श्रीगणेश और माता सरस्वती का स्मरण-पूजन करते रहे, तब तक बालकों की बुद्धि शुद्ध और निर्मल रही। पर जब से विद्यार्थियों से भगवान् श्रीगणेशका पूजन करना छुड़ाया गया, पूजनादि को पाखण्डवाद बताया गया, तब से इन पढ़ने वाले विद्यार्थियों की बुद्धि भ्रष्ट हो गयी, जिसका घोर भयंकर दुष्परिणाम अनैतिकता, अनुशासनहीनता आदि के रूप में प्रत्यक्ष देखने में आ रहा है। जो पतन यवन-शासन काल में अथवा अंग्रेज-शासन काल में नहीं हुआ, वह हो गया। बालकों को अक्षर-ज्ञान कराते समय आजकल ‘ग’ माने ‘गणेश’ न पढ़ाकर, ‘गधा’ पढ़ाया जाता है।