ज्वाला जी मंदिर, जम्मू और कश्मीर

महत्वपूर्ण जानकारी

  • पता: जवाला भगवान मंदिर, ख्रू, पुलवामा, जम्मू और कश्मीर - 191103
  • खुलने और बंद होने का समय :
  • शीतकालीन समय: 07:00 बजे से 06:00 बजे तक
  • ग्रीष्मकालीन समय: 06:00 बजे से 07:30 बजे तक
  • निकटतम रेलवे स्टेशन: काका पोरा रेलवे स्टेशन, ज्वाला भगवान मंदिर से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर पाम्पोर।
  • निकटतम हवाई अड्डे: शेख उल-अलम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा श्रीनगर, ज्वाला भगवान मंदिर से लगभग 25.7.1 किलोमीटर की दूरी पर।

ज्वाला जी मंदिर यह एक हिन्दू मंदिर जो कि भारत के राज्य जम्मू और कश्मीर के पुलमावा जिले के ख्रेव शहर में स्थित है। यह मंदिर ज्वाला जी और ज्वालामुखी के नाम से जाना जाता है। ज्वाला जी मंदिर कई कश्मीरी हिन्दू परिवारों की कुल देवी मानी जाती है। हर साल आषाढ़ के महीनें में ज्वालामुखी मेला का आयोजन किया जाता है।

ज्वाला जी मंदिर के पास एक पवित्र झरना है जिसे बोड नाग या अनीक नाग कहा जाता है। इस पवित्र झरने को नागबल के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर तक जाने के लिए लगभग 300 सीढि़यां है। श्रद्धालु देवी के दर्शन से पहले पवित्र झरने में डुबकी लगाते है।

ज्वालाजी का मंदिर पहाड़ी की चोटी पर स्थित है, जहां से खरे गांव लोकप्रिय रूप से जाला भगवती के नाम से जाना जाता है, ख्रेव में माता ज्वालाजी का तीर्थ कश्मीर के प्राचीन मंदिरों में से एक है। ज्वालाजी कई कश्मीरी पंडित परिवारों की इष्ट देवी हैं।

मंदिर के गर्भगृह के अंदर 4 फीट ऊंचाई, 4 फीट लंबाई और 3 फीट चैड़ाई वाले प्राकृतिक पत्थर के रूप में एक शिला है, जो सिंधुर से लिपटी हुई है। ऐसा कहा जाता है कि ज्वालाजी ने हर समय ज्योति के रूप में स्वयं को कभी न कभी प्रकट किया। ज्वालाजी मंदिर के पास भैरव बाबा का मंदिर है। इस तीर्थ के बाईं ओर एक श्रद्धेय पहाड़ी ‘विष्णु पद’ है। विष्णु पद के शीर्ष पर एक पैर का निशान है। किंवदंती के अनुसार यह पैर का निशान भगवान विष्णु का माना जाता है।

ज्वाला जी मंदिर का निर्माण

ज्वाल जी मंदिर का निर्माण बीसवीं शताब्दी के दौरान राजा दया कृष्ण कौल द्वारा किया गया था। ऐसा माना जाता है मंदिर के निर्माण से पूर्व ज्वालाजी ज्योति के रूप में यहां प्रकट हुई थी। ऐसा माना जाता है कि राक्षसों के द्वारा कुबेर के खज़ाने को हथियाने के लि देव लोक जा रहे थे। देवाताओं के अनुरोध पर ज्वाला देवी ने उन्होंने इस स्थान पर रोक दिया था। देवाताओं ने माता से इस स्थान पर रहने की प्रार्थना कि थी।




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