अमरनाथ मंदिर

महत्वपूर्ण जानकारी

  • स्थान: बालटाल अमरनाथ ट्रेक, वन ब्लॉक, अनंतनाग, पहलगाम, जम्मू और कश्मीर 192230
  • अपेक्षित प्रारंभ तिथि: सोमवार, 27 जून 2022।
  • यात्रा समाप्ति तिथि: गुरुवार 11 अगस्त 2022।
  • निकटतम रेलवे स्टेशन: जम्मू तवी, मंदिर रेलवे स्टेशन से लगभग 178 किमी की दूरी पर स्थित है।
  • निकटतम वायु बंदरगाह: जम्मू हवाई अड्डा, जो मंदिर से लगभग 178 किमी दूर है।
  • यात्रा प्रारंभ स्थान: पेहलागम और सोनमर्ग बलटाल
  • जम्मू से दूरी: पहलगाम जम्मू से 315 किलोमीटर और बालटाल जम्मू से 400 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
  • यात्रा के महीने: जुलाई-अगस्त।
  • पैदल दूरी: अमरनाथ मंदिर से पहलगाम 32 किलोमीटर और अमरनाथ मंदिर 14 किलोमीटर दूर है।
  • अगर आप श्री अमरनाथजी की यात्रा पर जाने की योजना बना रहे हैं तो आपको इन बातों को ध्यान से पढ़ना चाहिए
  • अमरनाथ यात्रा 2021

अमरनाथ मंदिर भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य में स्थित है। यह मंदिर हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण अंग है, और हिंदू धर्म में सबसे पवित्र मंदिरों में से एक माना जाता है। यह मंदिर एक गुफा के रूप स्थित है। इस गुफा की लंबाई (भीतर की ओर गहराई) 19 मीटर और चैड़ाई 16 मीटर है। गुफा 11 मीटर ऊँची है। इस गुफा का अमरनाथ गुफा भी कहा जाता है। अमरनाथ मंदिर भगवान शिव को पूर्णरूप से समर्पित है। इस मंदिर तक पहुचने की यात्रा को अमरनाथ की यात्रा कहा जाता है जो पूरे साल मे लगभग 45 दिन (जुलाई व अगस्त) ही होती है। इस स्थान का नाम अमरनाथ व अमरेश्वारा इसलिए पड़ा क्योंकि भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था।

पवित्र गुफा की विशेषता
इस स्थान की प्रमुख विशेषता पवित्र गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग का निर्मित होना है। प्राकृतिक बर्फ से निर्मित होने के कारण इसे स्वयंभू बर्फ का शिवलिंग भी कहते हैं यह शिवलिंग लगभग 10 फुट ऊचा बनता है। आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में होने वाले पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए लाखो लोग यहां आते है। चन्द्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ इस बर्फ का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है। श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है। मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फुट दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग अलग हिमखंड हैं।

ऐतिहासिक महत्व
इस गुफा का अपना ऐतिहासिक महत्व भी है, वो इसलिए क्योकि इसी गुफा में माता पार्वती को भगवान शिव ने अमरकथा सुनाई थी, जिसे सुनकर सद्योजात शुक-शिशु शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गये थे। गुफा में आज भी श्रद्धालुओं को कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई दे जाता है, जिन्हें श्रद्धालु अमर पक्षी बताते हैं। वे भी अमरकथा सुनकर अमर हुए थे।

ऐसा माना जाता है कि भगवान शंकर जब पार्वती को अमर कथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने छोटे-छोटे अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ा, माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में उतारा, अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा था। ये तमाम स्थल अब भी अमरनाथ यात्रा में आते हैं।

अमरनाथ गुफा का सबसे पहले पता सोलहवीं शताब्दी के पूर्वाध में एक मुसलमान गडरिए को चला था। आज भी चैथाई चढ़ावा उस मुसलमान गडरिए के वंशजों को मिलता है।




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