वह कौन से ऋषि थे जिन्होंने महासागर का पूरा पानी पी लिया था?

भारतीय धर्मग्रंथों और पुराणों में कई ऐसे चमत्कारिक और प्रेरणादायक प्रसंग मिलते हैं जो न केवल हमारी आस्था को मजबूत करते हैं बल्कि जीवन को एक नया दृष्टिकोण भी देते हैं। ऐसा ही एक अद्भुत प्रसंग जुड़ा है महर्षि अगस्त्य के साथ — जिन्होंने अपनी तपोबल से पूरे समुद्र का जल पी लिया था।

यह सुनने में भले ही अतिशयोक्ति लगे, लेकिन इस कथा में छुपा है गहरा आध्यात्मिक संदेश और प्रकृति की रक्षा का भाव।

कथा की पृष्ठभूमि

एक बार की बात है, तेजस्वी और सिद्ध तपस्वी महर्षि अगस्त्य समुद्र तट पर ध्यान वंदन कर रहे थे। उसी समय उन्होंने देखा कि एक छोटी-सी चिड़िया अपने चोंच में बार-बार जल भरकर समुद्र में डाल रही है। यह दृश्य अत्यंत विचित्र था।

महर्षि ने कौतूहलवश उस चिड़िया से इसका कारण पूछा। चिड़िया ने बताया कि समुद्र की लहरें उसके अंडों को बहा ले गई हैं, और वह समुद्र को खाली कर अपने अंडे वापस पाना चाहती है।

महर्षि अगस्त्य की करुणा और शक्ति

महर्षि अगस्त्य इस छोटे से पक्षी की अटूट निष्ठा और मातृत्व की भावना से भावुक हो उठे। उन्होंने सोचा कि जब यह नन्ही चिड़िया अपने प्रयास में थकने का नाम नहीं ले रही, तो एक ऋषि होकर क्या मैं इसका सहयोग नहीं कर सकता?

अपने तपबल और योगशक्ति से महर्षि अगस्त्य ने पूरा समुद्र पी लिया।

यह केवल शक्ति का प्रदर्शन नहीं था, बल्कि यह संदेश था कि संकल्प और करुणा मिल जाएं, तो कोई भी असंभव कार्य संभव हो सकता है।

समुद्र देव की विनती

समुद्र देव ने तब महर्षि अगस्त्य से क्षमा मांगी और वचन दिया कि वह फिर कभी किसी जीव का अहित नहीं करेंगे। तब जाकर महर्षि अगस्त्य ने समुद्र को पुनः अपने स्थान पर लौटाया।

यह कथा हमें क्या सिखाती है?

  • दृढ़ संकल्प: एक छोटी चिड़िया का संकल्प भी एक महापुरुष को प्रेरित कर सकता है।
  • करुणा की शक्ति: जब करुणा और शक्ति मिलती हैं, तो ब्रह्मांड भी झुक जाता है।
  • धर्म की रक्षा: यह प्रसंग बताता है कि सच्चे धर्म की रक्षा के लिए प्रकृति और ऋषि दोनों ही जागरूक रहते हैं।

महर्षि अगस्त्य न केवल एक महान ऋषि थे, बल्कि प्रकृति और प्राणियों के संरक्षक भी थे। उनकी यह कथा आज भी हमें बताती है कि जब किसी के साथ अन्याय होता है, तो ईश्वर या प्रकृति की शक्तियां अवश्य हस्तक्षेप करती हैं।




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