

हर साल सावन का महीना जैसे ही आता है, देशभर में एक अनोखी और आस्था से भरी लहर दौड़ जाती है — कांवड़ यात्रा की। कंधे पर भगवा कांवड़, आँखों में शिवभक्ति का उजाला और पैरों में अनगिनत मीलों की थकान… लेकिन दिल में सिर्फ एक ही लक्ष्य — भोलेनाथ तक गंगाजल पहुँचाना।
पर क्या आपने कभी सोचा है कि ये कांवड़िए किस रास्ते से चलते हैं?
कहाँ-कहाँ से गंगाजल भरते हैं?
और किन पवित्र स्थानों पर पहुंचकर जलाभिषेक करते हैं?
आईए जानते हैं भारत के प्रमुख कांवड़ मार्ग और तीर्थस्थल, जिनसे गुजरकर हर भक्त शिव के करीब पहुँचता है।
👉 यह देश की सबसे लंबी पैदल कांवड़ यात्रा हैं। हरिद्वार में कांवड़ मेलों का आयोजन, भजन मंडली, और सेवा शिविर पूरे मार्ग को भक्ति में रंग देते हैं।
👉 यह मार्ग लंबा और पहाड़ी है, लेकिन यहीं से माँ गंगा की उत्पत्ति हुई मानी जाती है, इसलिए इसकी महत्ता विशेष है।
👉 जो कांवड़िए मन, शरीर और आत्मा से पूरी तरह समर्पित होते हैं, वे ही इस मार्ग पर निकलते हैं। इसे ‘घोर तपस्या वाला मार्ग’ माना जाता है।
👉 यह देश की सबसे लंबी पैदल कांवड़ यात्रा में से एक मानी जाती है। यहां जल सीधे गंगा से नहीं, बल्कि उत्तरवाहिनी गंगा से लिया जाता है।
महाराष्ट्र के भक्त गोदावरी नदी से गंगाजल की तरह जल लेकर त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग तक जाते हैं।
👉 हालांकि यह पारंपरिक गंगाजल नहीं होता, पर श्रद्धा में कोई फर्क नहीं। क्योंकि जब भाव सच्चा हो, तो जल भी पवित्र हो जाता है।
कांवड़ यात्रा कोई साधारण सफर नहीं है। यह एक धार्मिक तपस्या, शारीरिक साहस और अंतर्मन की पुकार है।
हर मार्ग, हर पड़ाव, हर शिविर में न केवल थकान मिलती है, बल्कि मिलता है एक एहसास —
"मैं भोलेनाथ के और करीब आ गया हूँ।"
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