वृक्षारोपण का धर्म और पुण्य: अश्वत्थमेकम् पिचुमन्दमेकम् श्लोक का अर्थ और महत्व

"अश्वत्थमेकम् पिचुमन्दमेकम्
न्यग्रोधमेकम् दश चिञ्चिणीकान्।
कपित्थबिल्वाऽऽमलकत्रयञ्च
पञ्चाऽऽम्रमुप्त्वा नरकं न पश्येत्।।"

🌿 श्लोक का सरल हिन्दी अनुवाद:

"एक अश्वत्थ (पीपल), एक पिचुमंद (महुआ), एक न्यग्रोध (बरगद), दस चिञ्चिणी (छोटे इमली के पेड़),
तीन-तीन कपित्थ (कठहल), बिल्व (बेल), और आमलक (आंवला) तथा पाँच आम के वृक्षों का रोपण करने वाला मनुष्य नरक के दर्शन नहीं करता।"

🌱 इस श्लोक का भावार्थ:

भारतीय संस्कृति में वृक्षारोपण को केवल पर्यावरणीय कार्य नहीं, बल्कि एक पुण्यकर्म माना गया है। इस श्लोक में महर्षियों ने यह बताया है कि यदि कोई व्यक्ति कुछ विशिष्ट वृक्षों का रोपण करता है, तो वह जीवन के बाद भी नरक को नहीं देखता — यानी उसे मोक्ष अथवा दिव्य गति प्राप्त होती है।

🌼 इन वृक्षों का महत्व:

  1. अश्वत्थ (पीपल) – यह वृक्ष न केवल आक्सीजन का सर्वश्रेष्ठ स्रोत है, बल्कि इसे भगवान विष्णु का रूप भी माना जाता है।
  2. पिचुमंद (महुआ) – ग्रामीण जीवन का आधार, इसकी छांव, फूल और फल सभी उपयोगी हैं।
  3. न्यग्रोध (बरगद) – दीर्घायु और व्यापक छांव देने वाला यह वृक्ष त्रिदेवों का वास स्थल माना गया है।
  4. चिञ्चिणी (इमली) – इसका स्वाद तो प्रसिद्ध है ही, यह पाचन तंत्र के लिए भी लाभकारी है।
  5. कपित्थ (कठहल), बिल्व (बेल), आमलक (आंवला) – तीनों आयुर्वेद के अनुसार त्रिदोष नाशक हैं।
  6. आम – भारत की आत्मा कहे जाने वाले इस फल का वृक्ष मीठे फलों के साथ-साथ आनंद का प्रतीक है।

🌳 वृक्षारोपण: धर्म और पर्यावरण दोनों का संगम

जहाँ आज के समय में पर्यावरण संकट गहराता जा रहा है, वहीं इस श्लोक के माध्यम से प्राचीन ऋषियों ने वृक्षारोपण को धार्मिक और आध्यात्मिक ऊँचाई दी है। यह श्लोक केवल एक धार्मिक आदेश नहीं, बल्कि एक पर्यावरणीय चेतना भी है।

🙏 एक भावनात्मक संदेश:

सोचिए, जब हम एक पेड़ लगाते हैं, तो हम केवल धरती को हरियाली नहीं दे रहे होते, बल्कि अपने अगले जन्म के लिए पुण्य भी संचय कर रहे होते हैं। एक ऐसा पुण्य जो हमें नरक जैसे दुःखद अनुभव से भी बचा सकता है।




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