अशोक अष्टमी 2025

महत्वपूर्ण जानकारी

  • अशोक अष्टमी 2025
  • शनिवार, 05 अप्रैल 2025
  • अष्टमी आरंभ: 04 अप्रैल 2025 को रात्रि 08:13 बजे
  • अष्टमी समाप्त: 05 अप्रैल 2025 को शाम 07:26 बजे

अशोक अष्टमी का महत्व हिन्दू पुराणों में कई बार उल्लेखित है। शब्द ‘अशोक’ का अर्थ ‘दुःख से छुटकारा’ होता है जबकि ‘अष्टमी’ का अर्थ हिन्दू तिथि के अनुसार ‘आठवां दिन’ होता है। अशोक अष्टमी के दिन को इसलिए मनाया जाता है इस दिन भगवान शिव और देवी शक्ति ने भगवान राम के दुःखों को दूर किया था।

लोक मान्यतायों के अनुसार, जब भगवान राम और रावण के बीच महायुद्ध हो रहा था तो रावण को हराना भगवान राम के लिए कठिन हो रहा था, तो राम ने भगवान शिव और देवी शक्ति की कृपा के लिए पूजा की, तब प्रभु श्री राम के अटल भक्ति से प्रेरित होकर, देवी पार्वती ने उन्हें अपना आशीर्वाद दिया। इसके परिणामस्वरूप, अगले दिन भगवान राम ने ‘ब्रह्मास्त्र’ की शक्ति से राक्षस राजा रावण को वध कर दिया।

तब से, इस महत्वपूर्ण विजय का उत्सव बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है, जिसमें भगवान शिव और देवी पार्वती के अष्टमी के दिन शोभायात्राएँ निकाली जाती हैं।

आशोक अष्टमी पूजा क्यों मनाई जाती है?

भारत में कई त्योहार प्रकृति की सुंदरता की श्रद्धांजलि के रूप में मनाए जाते हैं। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार ईश्वर प्रत्येक कण-कण में मौजूद है, इस प्रकार पेड़ों की पूजा को ईश्वर की पूजा के समान माना जाता है। सनातंन संस्कृति में हर त्योहार में प्रकृति का उत्सव मनाया जाता है।

प्रत्येक पेड़ का अपना महत्व होता है, जीवन के लिए उनका सहारा होने के साथ-साथ, वे हमारी समृद्धि में भी सहायक होते हैं। अशोक पेड़ भी हमारे जीवन में खुशियों और शांति का दाता है। अशोक अष्टमी का त्योहार हमारे जीवन में प्रकृति की प्रासंगिकता को मानता है।

ऐसा कहा जाता है कि अशोक पेड़ का उत्पत्ति भगवान शिव से हुई थी। इस पेड़ की पूजा से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। वांछित लक्ष्यों को प्राप्त करने या इच्छाओं की पूर्ति के लिए, आशोक पेड़ की जड़ों में दूध चढ़ाना और उसके चारों ओर सूत का बंधन करना उपयुक्त होता है। आशोक पेड़ों की पूजा धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों ही दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।

गरुड़ पुराण में अशोक वृक्ष का बहुत सुंदर वर्णन किया गया है

अशोककलिका ह्यष्टौ ये पिबन्ति पुनर्वसौ ।
चैत्रे मासि सिताष्टम्यां न ते शोकमवाप्नुयुः ॥

अर्थात यदि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के साथ पुनर्वसु नक्षत्र का योग भी हो तो इस दिन व्रत करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है।

ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने और इस दिन अशोक वृक्ष की आठ कलियों का सेवन करने से व्यक्ति को उसके सभी दुखों से मुक्ति मिल जाती है। कलियों का सेवन करते समय निम्नलिखित मंत्र का जाप करना चाहिए -

त्वामशोक हराभीष्ट मधुमाससमुद्भव ।
पिबामि शोकसन्तप्तो मामशोकं सदा कुरु ।।







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