यह श्लोक भगवद गीता, अध्याय 7, श्लोक 15 से है। यह संस्कृत में लिखा गया है और हिंदी में इसका अनुवाद इस प्रकार है:
न मां दुष्कृतिनो मूढा: प्रपद्यन्ते नराधमा: |
माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिता: ||15||
"चार प्रकार के लोग मेरी शरण में नहीं आते - जो पापकर्मी, मूर्ख, और अधम स्वभाव के लोग हैं, जिनका ज्ञान माया ने ढक लिया है और जो आसुरी स्वभाव के हैं— वे मेरी शरण में नहीं आते।"
भगवान श्रीकृष्ण यहां एक कड़वा लेकिन जरूरी सच बता रहे हैं— कि कुछ लोग क्यों उनकी ओर आकर्षित नहीं हो पाते। यह वो लोग हैं जो बार-बार गलत कर्मों में लगे रहते हैं, जिनका विवेक माया ने ढक लिया है और जो अहंकार, ईश्वर-विरोध और स्वार्थी सोच से भरे होते हैं। यह बात हमें खुद की भी जाँच करने को कहती है: क्या हम भी कभी अपने ही अंह, ग़लत आदतों और "मुझे सब पता है" वाले भाव में उलझकर प्रभु की पुकार सुन नहीं पाते? यदि हाँ, तो यही पहला कदम है माया से मुक्त होने का — स्वयं को पहचानना।