वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर

महत्वपूर्ण जानकारी

  • Location: Deoghar, Shivganga Muhalla, Jharkhand, 814112
  • Temple Open and Close Timing: Morning: 04:00 AM to 03:30 pm
  • Evening: 06:00 pm to 09:00 pm. 
  • During various religious occasions, the darshan timings are extended.
  • Nearest Railway Station: Baidyanath Dham Railway Station (BDME) at a distance of nearly 7 kilometres from Baidyanath Temple.
  • Nearest Airport: Domestic Airport is Lok Nayak Jayaprakash Airport at a distance of nearly 272 kilometres from Baidyanath Temple.
  • District: Deoghar district
  • Temple board: Baba Baidyanath Temple Management Board
  • Important festival: Maha Shivaratri, Sharabani Mela
  • Number of temples: 22
  • Other Name : Vaidyanath Jyotirlinga

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर एक हिन्दूओं का एक प्रमुख तीर्थस्थल है यह मंदिर पूर्णतः भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर झारखंड में अतिप्रसिद्ध देवघर नामक स्थान पर स्थित है। देवघर को पवित्र तीर्थ होने के कारण लोग इसे वैद्यनाथ धाम भी कहते हैं। वैद्यनाथ मंदिर में स्थित ज्योति लिंग भगवान शिव के 12 ज्योति लिंग में से है तथा 12 ज्योति लिंगों में से वैद्यनाथ को नौवां ज्योति लिंग माना जाता है। यह बाबा बैद्यनाथ का मुख्य मंदिर है, जहां ज्योतिर्लिंग स्थापित है, और 21 अन्य मंदिर हैं।

वैद्यनाथ मंदिर जहां मन्दिर स्थित है उस स्थान को ‘देवघर’ अर्थात देवताओं का निवास स्थान भी कहते हैं। बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित होने के कारण इस स्थान को देवघर नाम मिला है। कहा जाता है कि यहाँ पर आने वालों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। इस कारण, इस ज्योतिलिंग को ‘कामना लिंग’ भी कहा जाता हैं।

वैद्यनाथ ज्योतिलिंग का वर्णन महा शिवपुरण भी मिलता है जो वैद्यनाथ ज्योतिलिंग के स्थान की पहचान कराता है जिसके अनुसार बैद्यंथम ‘चिधभूमि’ में है, जो देवघर का नाम है।

बाबा बैद्यनाथ मन्दिर परिसर के पश्चिम में देवघर के मुख्य बाजार में तीन और मन्दिर भी हैं। इन्हें बैजू मन्दिर के नाम से जाना जाता है। इन मन्दिरों का निर्माण बाबा बैद्यनाथ मन्दिर के मुख्य पुजारी के वंशजों ने किसी जमाने में करवाया था। प्रत्येक मन्दिर में भगवान शिव का लिंग स्थापित है।
शिव पुराणों में वर्णित कहानियों के अनुसार, लंका के राजा राक्षस रावण ने महसूस किया था कि जब तक महादेव हमेशा के लिए लंका में नहीं रहते तब तक उनकी राजधानी परिपूर्ण और स्वतंत्र नहीं होगी। उन्होंने महादेव को निरंतर ध्यान दिया। महादेव को प्रसन्न करने के लिए अपने एक-एक करके अपना सर काट कर शिवलिंग पर अर्पण कर दिये जैसे ही रावण अपना दसवां सर काट रहा था भगवान शिव प्रसन्न हो गए और उन्हें अपने आत्मलिंग को लंका तक ले जाने की अनुमति दी। महादेव ने रावण को कहा ही अगर ये शिव लिंग जहां भी धरती पर पहले रखा जाएगा वहीं इस लिंग की स्थापना हमेशा के लिए हो जाएगी। रावण खुश होकर शिवलिंग का लंका ले जा रहा था।

इस घटना से अन्य देवताओं का चिंता होने लगी अगर रावण शिवलिंग को लंका ले गया तो रावण अजेय हो जाएगा। तो सभी देवताओं ने वरुण देवता से अनुरोध किया कि वह रावण के शरीर में प्रेवश कर लघुशंका के लिए प्रेरित करे। इससे रावण को लघुशंका करने की इच्छा होने लगी। अब रावण एक ऐसे आदमी की तलाश कर कर रहा था जिसे वह अस्थायी रूप से लिंगम को सौंप सकता था। तब भगवान गणेश एक ब्राह्मण का रूप धारण कर रावण के सामने उपस्थित हुए थे। इससे रावण अनजान था, रावण ने ब्राह्मण को लिंगगम को सौंप दिया। ब्राह्मण ने इस स्थान पर लिंगाम रखा और जो अब बैद्यनाथधाम है। रावण ने उस जगह से लिंग को हटाने की कोशिश की, जहां उसे रखा गया था। परन्तु रावण लिंग का एक इंच भी नहीं हिला सका। निराश होकर शिवलिंग पर अपना अँगूठा गड़ाकर लंका को चला गया। रावण वैद्यनाथ ज्योतिलिंग की पूजा के लिए रोज इस स्थान पर आता था।

वैद्यनाथ धाम पर हर साल सावन के महीने में श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) में मेला लगता है जिसमें लाखों श्रद्धालु बाबा भोलेनाथ के दर्शन करने आते है। ये सभी श्रद्धालु सुल्तानगंज से पवित्र गंगा का जल लेकर कई किलोमीटर की अत्यन्त कठिन पैदल यात्रा करते हैं। इसके बाद वे गंगाजल को अपनी-अपनी काँवर में रखकर बैद्यनाथ धाम और बासुकीनाथ की ओर बढ़ते हैं। पवित्र जल लेकर जाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि वह पात्र जिसमें जल है, वह कहीं भी भूमि से न सटे। मन्दिर के समीप ही एक विशाल तालाब भी स्थित है। बाबा बैद्यनाथ का मुख्य मन्दिर सबसे पुराना है जिसके आसपास अनेक अन्य मन्दिर भी बने हुए हैं। बाबा भोलेनाथ का मन्दिर माँ पार्वती जी के मन्दिर से जुड़ा हुआ है।

वासुकिनाथ भगवान शिव मन्दिर के लिये जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि वैद्यनाथ मन्दिर की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है जब तक वासुकिनाथ में दर्शन नहीं किये जाते। परन्तु पुराणों में ऐसा कहीं वर्णन नहीं है। यह मन्दिर देवघर से 42 किलोमीटर दूर जरमुण्डी गाँव के पास स्थित है। यहाँ पर स्थानीय कला के विभिन्न रूपों को देखा जा सकता है। इसके इतिहास का सम्बन्ध नोनीहाट के घाटवाल से जोड़ा जाता है। वासुकिनाथ मन्दिर परिसर में कई अन्य छोटे-छोटे मन्दिर भी हैं।




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