ॐ जय जगदीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे - श्री जगदीश जी की आरती

महत्वपूर्ण जानकारी

  • दुनियाँ में सबसे ज्यादा लोकप्रिय आरती ओम जय जगदीश हरे पं. श्रद्धाराम फिल्लौरी द्वारा सन् 1870 में लिखी गई थी। श्री जगदीश आरती हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के रूपों में से एक, भगवान जगन्नाथ को समर्पित एक भक्ति अनुष्ठान है। इस आरती में भजन गाते हुए और भक्ति व्यक्त करते हुए देवता को प्रकाश (आमतौर पर जलते हुए दीपक या मोमबत्तियों के रूप में) अर्पित किया जाता है। यह भगवान जगन्‍नाथ को समर्पित मंदिरों में, विशेष रूप से भारत के ओडिशा में जगन्‍नाथ पुरी मंदिर में, बड़ी श्रद्धा के साथ किया जाता है। आरती का उद्देश्य ब्रह्मांड के भगवान, भगवान जगन्नाथ के आशीर्वाद और दिव्य उपस्थिति का आह्वान करना और उनके प्रति कृतज्ञता और भक्ति व्यक्त करना है।

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे |
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट, क्षण में दूर करे | ॐ जय जगदीश हरे ||

जो ध्यावे फल पावे, दुःखबिन से मन का, स्वामी दुःखबिन से मन का |
सुख सम्पति घर आवे, सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का | ॐ जय जगदीश हरे ||

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी, स्वामी शरण गहूं मैं किसकी |
तुम बिन और न दूजा, तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी | ॐ जय जगदीश हरे ||

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी, स्वामी तुम अन्तर्यामी |
पारब्रह्म परमेश्वर, पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी | ॐ जय जगदीश हरे ||

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता, स्वामी तुम पालनकर्ता |
मैं मूरख फलकामी मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता | ॐ जय जगदीश हरे ||

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति, स्वामी सबके प्राणपति |
किस विधि मिलूं दयामय, किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति | ॐ जय जगदीश हरे ||

दीन-बन्धु दुःख-हर्ता, ठाकुर तुम मेरे, स्वामी रक्षक तुम मेरे |
अपने हाथ उठाओ, अपने शरण लगाओ द्वार पड़ा तेरे | ॐ जय जगदीश हरे ||

विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा, स्वमी पाप हरो देवा |
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा | ॐ जय जगदीश हरे ||

तन,मन,धन, सब तेरा, स्वामी सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा।।ॐ जय जगदीश हरे ||

श्री जगदीश जी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी सुख संपत्ति पावे।।



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