भगवद गीता अध्याय 6, श्लोक 5

यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनुषज्जते ।
सर्वसङ्कल्पसंन्यासी योगारूढस्तदोच्यते ॥4॥

अर्थ:  मन की शक्ति द्वारा अपना आत्म उत्थान करो और स्वयं का पतन न होने दो। मन जीवात्मा का मित्र और शत्रु भी हो सकता है।

संस्कृत शब्द का हिंदी में अर्थ:

उद्धरेत्-उत्थान; 
आत्मना-मन द्वारा; 
आत्मानम्-जीव; 
-नहीं; 
आत्मानम्-जीव; 
अवसादयेत्-पतन होना; 
आत्मा-मन; 
एव–निश्चय ही; 
हि-वास्तव में; 
आत्मनः-जीव का; 
बन्धुः-मित्र; 
आत्मा-मन; 
एव-निश्चय ही; 
रिपुः-शत्रु; 
आत्मनः-जीव का



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