फुलेरा दूज 2025

महत्वपूर्ण जानकारी

  • फुलेरा दूज 2025
  • शनिवार, 01 मार्च 2025
  • द्वितीया तिथि आरंभ- 01 मार्च 2025 प्रातः 03:16 बजे
  • द्वितीया तिथि समाप्त - 02 मार्च 2025 प्रातः 00:09 बजे
  • क्या आप जानते हैं: फुलेरा दूज एक ऐसा दिन है जो सभी दोषों से मुक्त है। इसलिए सभी शुभ कार्यों विशेषकर विवाह समारोहों में फुलेरा दूज के दिन किसी मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती है। इस दिन भारत में सबसे ज्यादा विवाह होते है।

फुलेरा दूज का त्योहार को शुभ और सर्वोच्च दिन में रूप में माना जाता है। यह त्योहार उत्तर भारत के सभी क्षेत्रों में मनाया जाता है विशेषकर यह त्योहार ब्रज, मथुरा और वृंदावन के क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण दिन है। यह त्योहार पूर्णतय भगवान श्रीकृष्ण का समर्पित है। फुलेरा दूज, हिंदू कैलेंडर में फागुन के महीने में शुक्ल पक्ष द्वितीया को चिह्नित किया जाता है। फुलेरा दूज, वसंत पंचमी और होली के त्योहार के बीच आता है। फुलेरा दूज के दिन भगवान श्रीकृष्ण के मंदिरों को विशेष रूप से सजाया जाता है और भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा का आगामी होली की तैयारी करते हुए दिखाया जाता है। इस दिन वृंदावन का प्रसिद्ध मंदिर श्रीबांके बिहारी मंदिर में हजारों की सख्या में श्रीबांके बिहारी के दर्शन हेतु आते है। श्रीबांके बिहारी मंदिर को फुलों से सजाया जाता है।

शाब्दिक अर्थ में फुलेरा का अर्थ है ‘फूल’ जो फूलों को दर्शाता है और "दूज" का अर्थ है चंद्र पखवाड़े का दूसरा दिन। जैसा कि नाम से पता चलता है, फूल इस त्योहार के उत्सव में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं। यह माना जाता है कि भगवान कृष्ण फूलों के साथ खेलते हैं। इसलिए इस दिन भगवान कृष्ण के साथ रंग-बिरंगे फूलों से होली खेलने का होता है। यह त्योहार लोगों के जीवन में खुशियां और उल्लास लाता है। यह त्यौहार प्रकृति माँ के आशीर्वाद के लिए आभारी होने की याद दिलाता है।

फुलेरा दूज की पौराणिक कथा

ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण लंबे समय से अपने कार्य में व्यस्त रहे थे। जिसके कारण भगवान श्रीकृष्ण राधा रानी से नहीं मिल पा रहे थे। राधा रानी अत्यंत दुखी रहने लगी थी। राधा रानी के दुखी होने के कारण प्रकृति पर विपरित प्रभाव पड़ने लगा, भगवान श्रीकृष्ण ने प्रकृति की हालत को देख कर, राधा रानी का दुख और नाराजगी को दुर करने के लिए मिलने गये। जब भगवान श्रीकृष्ण, राधा रानी से मिलें तो राधा और गोपियां प्रसन्न हो गईं और चारों ओर फिर से हरियाली छा गई। श्रीकृष्ण ने एक फूल तोड़ा और राधारानी पर फेंक दिया। इसके बाद राधा ने भी कृष्ण पर फूल तोड़कर फेंक दिया। फिर गोपियों ने भी एक दूसरे पर फूल फेंकने शुरू कर दिए। हर तरफ फूलों की होली शुरू हो गई। यह सब फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को हुआ था। तब से इस तिथि को फुलेरा दूज के नाम से एक त्योहार के रूप में मनाया जाने लगा।

सभी शुभ कार्यों के लिए शुभ समय

फुलेरा दूज एक ऐसा दिन है जो सभी दोषों से मुक्त है। इसलिए सभी शुभ कार्यों विशेषकर विवाह समारोहों में फुलेरा दूज के दिन किसी मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती है। इस दिन भारत में सबसे ज्यादा विवाह होते है।

इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के मंदिरों को फुलों से सजाया जाता है। विशेषकर इस्काॅन संस्था के मंदिरों के लिए यह दिन बहुत शुभ व महत्वपूर्ण होता है।



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