आमलका एकादशी या आंवला एकादशी एक हिंदू पवित्र दिन है, जिसे फाल्गुन महीने के 11 वें दिन (एकादशी) को फाल्गुन (फरवरी-मार्च) के चांद्र मास में मनाया जाता है। यह अमलाका या आंवले के पेड़ का उत्सव है तथा इस दिन आंवला के पेड़ की पूजा की जाती है। वृक्ष या पेड़ को हिन्दू धर्म का एक मुख्य अंग माना जाता है। हिन्दू धर्म में ये कहा जाता है कि सार्वभौमिक आत्मा या सर्वव्यापी देवता हर चीज में रहते है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में पेड़ बहुत महत्त्वपूर्ण है।
भगवान विष्णु, जिनके लिए एकादशियां पवित्र हैं, माना जाता है कि वे वृक्ष में निवास करते हैं। इस दिन देवता की कृपा पाने के लिए आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। यह दिन रंगों के हिंदू त्योहार होली के मुख्य उत्सव की शुरुआत का प्रतीक है।
स्नान करके भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर संकल्प करें कि मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता एवं मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत रखता हूं। मेरा यह व्रत सफलता पूर्वक पूरा हो इसके लिए श्री हरि मुझे अपनी शरण में रखें। संकल्प के पश्चात षोड्षोपचार सहित भगवान की पूजा करें।
भगवान की पूजा के पश्चात पूजन सामग्री लेकर आंवले के वृक्ष की पूजा करें। सबसे पहले वृक्ष के चारों की भूमि को साफ करें और उसे गाय के गोबर से पवित्र करें। पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें। इस कलश में देवताओं, तीर्थों एवं सागर को आमत्रित करें। कलश में सुगन्धी और पंच रत्न रखें। इसके ऊपर पंच पल्लव रखें फिर दीप जलाकर रखें। कलश के कण्ठ में श्रीखंड चंदन का लेप करें और वस्त्र पहनाएं। अंत में कलश के ऊपर श्री विष्णु के छठे अवतार परशुराम की स्वर्ण मूर्ति स्थापित करें और विधिवत रूप से परशुराम जी की पूजा करें। रात्रि में भगवत कथा व भजन कीर्तन करते हुए प्रभु का स्मरण करें।
द्वादशी के दिन प्रातरू ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा दें साथ ही परशुराम की मूर्ति सहित कलश ब्राह्मण को भेंट करें। इन क्रियाओं के पश्चात परायण करके अन्न जल ग्रहण करें। पश्चिमी राजस्थान में आंवला वृक्ष नही होने पर औरते खेजड़ी वृक्ष की पुजा करती हैं।