गोवत्स द्वादशी व्रत 2025

महत्वपूर्ण जानकारी

  • गोवत्स द्वादशी 2025
  • शनिवार, 18 अक्टूबर 2025
  • द्वादशी तिथि प्रारम्भ: 17 अक्टूबर 2025 प्रातः 11:12 बजे
  • द्वादशी तिथि समाप्त: 18 अक्टूबर 2025 दोपहर 12:18 बजे

गोवत्स द्वादशी, कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की द्वादशी गोवत्स (गाय का बछड़ा) के रूप में मनाई जाती है। गोवत्स द्वादशी को नंदिनी व्रत के रूप में भी मनाया जाता है। नंदिनी हिंदू धर्म में दिव्य गाय है। इस दिन गाय बछड़े को पूजने का विधान है। पूजने के बाद उन्हें गेहूँ से बने पदार्थ खाने को देने चाहिए। इस दिन गाय का दूध व गेहूँ के बने पदार्थो का प्रयोग वर्जित है। कटे फल का सेवन नहीं करना चाहिए। गोवत्स क कहानी सुनकर ब्राह्मणों को फल देने चाहिए।

गोवत्स द्वादशी का महत्व क्यों है?:

  1. गायों के प्रति सम्मान: हिंदू धर्म में गायों को दैवीय और प्राकृतिक अच्छाई के प्रतीक के रूप में सम्मानित किया जाता है। वे अक्सर कई देवताओं, विशेषकर भगवान कृष्ण से जुड़े होते हैं। यह त्योहार गायों द्वारा प्रदान किए जाने वाले पोषण के महत्वपूर्ण स्रोत दूध और मानव जीवन को समर्थन देने में उनकी भूमिका के प्रति आभार व्यक्त करने का एक अवसर है।
  2. कृषि में भूमिका: ग्रामीण भारत में, गायें कृषि में एक आवश्यक भूमिका निभाती हैं। इनका उपयोग खेतों की जुताई के लिए किया जाता है और इनका गोबर जैविक खाद का एक मूल्यवान स्रोत है। यह त्यौहार कृषक समुदाय में गायों के योगदान को स्वीकार करता है।
  3. प्रकृति के साथ सद्भाव: यह त्योहार प्रकृति और उसके सभी प्राणियों के साथ सद्भाव में रहने के विचार को बढ़ावा देता है। यह लोगों को जानवरों और पर्यावरण का सम्मान करने और उनकी रक्षा करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
  4. नंदिनी व्रत: गोवत्स द्वादशी को नंदिनी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। यह नंदिनी, दिव्य गाय और नंदी, पवित्र बैल के प्रति सम्मान में मनाया जाता है। शैव परंपरा में नंदिनी और नंदी दोनों का विशेष स्थान है और यह त्योहार शैव भक्तों के लिए धार्मिक महत्व रखता है।
  5. गायों को खाना खिलाना: गोवत्स द्वादशी पर, लोग गायों और उनके बछड़ों को विशेष भोजन खिलाते हैं, जो आमतौर पर गेहूं और गुड़ से बना होता है। यह कार्य शुभ माना जाता है और माना जाता है कि यह घरों में आशीर्वाद और समृद्धि लाता है।
  6. कृतज्ञता का दिन: गोवत्स द्वादशी न केवल गायों के प्रति बल्कि प्रकृति की प्रचुरता के लिए भी कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है। यह लोगों को सभी जीवन रूपों के पोषण और संरक्षण के महत्व को पहचानने के लिए प्रोत्साहित करता है।
  7. धार्मिक अनुष्ठान: भक्त इस दिन को गौशालाओं में जाकर, प्रार्थना करके और गायों और बछड़ों को खिलाकर मनाते हैं। वे अनुष्ठान भी कर सकते हैं और इन कोमल प्राणियों का आशीर्वाद ले सकते हैं।

गोवत्स द्वादशी व्रत कथा

बहुत समय हुए सुवर्णपुर नगर में देवदानी राजा का राज्य था। राजा के सीता और गीता दो रानियाँ थी। राजा ने एक भैंस तथा एक गाय बछड़ा पाल रखा था। सीता भैंस की देखभाल करती थी तथा गीता गाय बछड़े की देखभाल करती थी। गीता बछड़े पर पुत्र के समान प्यार करती थी।

एक दिन भैंस ने चुगली कर दी कि गीता रानी मुझसे से ईष्या करती है। ऐसा सुनकर सीता ने गाय के बछड़े को मारकर गेहूँ के ढेर में छुपा दिया।

राजा जब भोजन करने बैठा तब माँस की वर्षा होने लगी महल के अन्दर चारों ओर रक्त और मांस दिखाई देने लगा। भोजन की थाली में मल-मूत्र हो गया। राजा की समझ में कुछ नहीं आया। तभी आकाशवाणी हुई कि हे राजन! तुम्हारी रानी सीता ने गाय के बछड़े को मारकर गेहूँ के ढेर में छिपा दिया है।। कल गोवत्स द्वादशी है। तुम भैंस का राज्य से बाहर करके गोवत्स की पूजा करो। तुम्हारे तप से बछड़ा जिन्दा हो जायेगा। राजा ने ऐसा ही किया। जैसे ही राजा ने मन से बछड़े को याद किया वैसे ही बछड़ गेहूँ के ढेर से निकल आया। यह देख राजा प्रसन्न हो गया। उसी समय से राजा ने अपने राज्य में आदेश दिया कि सभी लोग गोवत्स द्वादशी का व्रत करें।



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